विदिशा

मिट्टी बनने के लिये धैर्य, सहनशीलता और क्षमा कर देना ये तीन जरुरी है। मोरारी बापू

आनंदपुर डेस्क :

विपत्ति पड़े तब विश्वास रखो-एक ही सूत्र है। पादुका ही गुरु का स्वधाम है।
सद्गुरु रणछोड़दास जी महाराज की भूमि पर चल रही रामकथा के छठे दिन बापू ने बताया कि गुरु के स्वभाव,स्वरूप, स्वधाम, स्वधर्म के बारे में हम संवाद कर रहे हैं।।हमने यह भी कहा था कि मिट्टी कुछ नहीं बोलती।।सद्गुरु की प्राप्ति के लिए मिट्टी हो जाना चाहिए।। मिट्टी कैसे बनेंगे हम? कैसे सद्गुरु पद की रज बन सकेंगे? तीन वस्तु से मिट्टी हुआ जाता है स्थूल रूप से मिट्टी की बात नहीं सूक्ष्म रूप से मिट्टी बन जाने की बात है।। हम कैसे बता पाएंगे सद्गुरु के बारे में? ना कह सकते हुए भी कुछ कहेंगे-तदपि कही रहा न जाए।। मिट्टी बनने के लिए आश्रित को अपने आप को पूरा खोलना पड़ेगा, पूर्णत: आत्मनिवेदन करना पड़ेगा।। तुलसी जी के गुरु-रत्नावली भी गुरु हो सकती है-नरहरी महाराज और रामचरितमानस मानस के प्रारंभ में आत्म निवेदन तुलसी करते हैं।करतब बायस बेस मराला, जो वेद मत को छोड़ दे कपट और कलयुग के भांडे जिनमें भरे पड़े हैं,जो राम के भक्त कहलाते हैं, लेकिन पैसे के,कोह- क्रोध के और काम के किंकर है। किंकर कंचन कोह काम के.. बेस में हंस है मगर करतब से कौवे है,जो भगवान के छली भगत है, असली नहीं है, लुच्चे भक्त है ऐसे लोग में पहला नंबर मेरा आता है ऐसा तुलसी जी कहते हैं।। तुलसी जी ने आत्मनिवेदन करते हुए कहा कि धर्म की ध्वजा को लेकर दांभिक बनकर में घूम रहा हूं जो मैं अवगुण कहना चाहूंगा तो कथा का पार नहीं आएगा इसलिए प्रार्थना करता हूं सयाने थोड़े में सब जान जाएंगे।। राम का गायन विशाल है सारद सेस महेश विधि आगम निगम पूरान-ये सातों नेति नेति करते हैं निरंतर गानों में परम परमात्मा के गुण गायकों में यह सातों श्रेष्ठ है फिर भी नेति नेति पर रुक जाते हैं।। फिर भी कहीं बिना रहा न जाए! ये मिट्टी बनने की तैयारी है और मिट्टी बनने का एक अर्थ है धैर्य रखो।। धीरज रखो धरती का लक्षण है:धैर्य।। एक जन्म घटना न घटी तो यह प्रश्न कभी नहीं करना कि कब तक धैर्य रखें? जब तक घटना ना घटे तब तक।। फिर सहन करो। मिट्टी सब के पद प्रहार सहती है और क्षमा करो।। सद्गुरु के स्वधर्म स्वरूप के लिए मिट्टी बनना पड़ता है।। मिट्टी बनने के लिए धैर्य सहनशीलता और क्षमा करना।। विपत्ति पड़े तब विश्वास रखो एक ही सूत्र है।।


दृष्टांत कथा:


एक इतिहास है:१९८८ में रशिया जब सोवियत संघ था।रशिया का एक हिस्सा-आर्मेनिया था। सुबह के ११:२१ हुई थी और एक भयंकर भूकंप आया।। ४०-५०हजार लोग मर गए। लाखों लोग घायल हुए थे।। शताब्दियों में जो शहर बने थे चंद सेकंड में तबाह हो गए।। सेम्युअल नाम का रशियन बाप भूकंप से पहले अपने बेटे अर्मद को स्कूल छोड़ने गया,और उसी वक्त कहा कि मैं तेरे साथ हूं।।लेकिन जब गया तो रेडियो पर समाचार निरंतर सुनाई देते थे।।बचाव कार्य शुरू हु।। सैमुअल दौड़ा,लेकिन देखा तो पूरा स्कूल काटमाल का ढेर बन गया था। कोई बच्चे सलामत है कि नहीं सबके मां-बाप मां-बाप मोमबत्ती जलाकर बैठे थे।। सैमुअल पागल सा हो गया।। मिट्टी हटाने लगा सब ने कहा यह पागलपन है,कुछ नहीं बचा है।।लेकिन फिर भी हटाता रहा और आखरी पत्थर हटा। एक आवाज आ रही थी पापा बचा लो पापा! और पत्थर हटा बेटा जीवित निकला।बेटे ने कहा मुझे पहले बाहर मत निकालो मेरे साथ और १४ बच्चे दबे हुए हैं।फिर सेम्युअल ने ९ बच्चे को जीवित निकाले। सबके मां-बाप दौड़ आये। सैम्युअल ने पूछा तू तो जीवित बचा यह कैसे आया तेरे मन में?बालक ने कहा कि मैं जब गृहकार्य कर रहा था तो आपने कहा था विपत्ति में विश्वास करना।।


गुरु का स्वधाम कौन?

पादुका ही स्वधाम है।। भगवान राम अयोध्या में रहे तो अवध स्वधाम था जन्म नहीं लिया था तो साकेतवासी थे।चित्रकूट में रहे तब तक चित्रकूट स्वधाम था, पंचवटी गए किष्किंधा गए तो प्रवर्षण पर्वत धाम बना लंका में सुमेर पर्वत धाम बना।। लेकिन भरत को पूछो भगवान कहां है?जहां उसकी पादुका है।। सद्गुरु का धाम उसकी पादुका है।। जहां पादुका होती है वहां उसी को आना पड़ता है।। हर क्षेत्र में विश्वास हिल जाए लेकिन विपत्ति में विश्वास रहना चाहिए।। जो विश्वास की जरूरत हो तब डीगना नहीं चाहिए।। शिवजी का पहला स्वरूप रामचरितमानस में अखंड बोध स्वरूप।। गुरु बोध स्वरूप है। नित्य अखंडमंडलाकार।। रामचरितमानस को छूओ तो शंकर के चरण का स्पर्श हो जाएगा।। मानस स्वय शिव स्वरूप है।।जैसे पासपोर्ट आधार कार्ड आईडेंटिटी रखते हैं वैसे रामचरितमानस अपनी झोली में रखो।।पढो भी नहीं फिर भी विपत्ति में विश्वास जग आएगा।।
वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रुपिणम् ..दूसरा स्वरूप शांतरस ने विग्रह किया हो।। रुद्राष्टक में पांच स्वरूप है निर्वाण स्वरूप- मोक्ष स्वरूप।। वह खुद मोक्ष रूप है।। विदुरुप- विभूति नहीं विभु है।। कृष्ण जगतगुरु है और विभूति योग में अनेक विभूति कहने के बाद कहते हैं विभूतियों का अंत नहीं।तो विभु का अंत कैसे होगा! पांचवा रूप है व्यापक रूप। इससे ज्यादा कोई व्यापक नहीं, चराचर में व्याप्त है।।छट्टा रूप ब्रह्म स्वरूप।सातवां वेद स्वरूप। वेद स्वरूप उसी को नीजरुप,निर्गुण सगुण साकार निराकार लेकिन मूलत: वो सात है।। रामचरितमानस में वाल्मीकि ने सद्गुरु वचन अगोचर-वाणी से पर है। शब्द को सेवन करो तो रस रूप गंध और स्वाद आने लगेगा।।अधिकारी के हाथ में शब्द शास्त्र बन जाता है,अनअधिकारी के हाथ में शस्त्र बन जाता है।। सद्गुरु का स्वधर्म: एक बार कोई शरण में आ जाए तो अपना लेते हैं।।प्राणी मात्र भूत मात्र को अभय कर देना, साधु का परित्राण करना।।
शिव चरित्र के बाद राम जन्म के संक्षिप्त कारण दिखाकर राम प्रागत्य का मंगल गान करने के बाद समग्र विश्व को रामजन्म की बधाई के साथ कथा का विराम हुआ।।

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