कालादेव का अनोखा पत्थर मार युद्ध: रावण दल के सैनिकों ने बरसाएं राम सैनिकों पर पत्थर, छू भी नहीं पाएं

आनंदपुर डेस्क :
विदिशा जिले से करीब 125 किलोमीटर दूर बसे ऐतिहासिक गांव काला देव में इस वर्ष भी प्राचीन परंपरा पत्थर मार युद्ध दशहरा का आयोजन श्रद्धा और धूमधाम से किया गया। इस अद्भुत और अनोखे पर्व को देखने के लिए विदिशा, भोपाल, गुना, रायसेन, राजगढ़, अशोक नगर सहित प्रदेश के कई जिलों से करीब 20 हजार श्रद्धालु और ग्रामीण दशहरा मैदान में जुटे। हजारों लोगों की मौजूदगी में रावण दल और राम दल के बीच हुआ यह पत्थर युद्ध अपनी अनूठी धार्मिक मान्यता और चमत्कार के कारण विशेष आकर्षण का केंद्र बना रहा।
कैसे होता है युद्ध?
परंपरा के अनुसार दशहरा मैदान में महाराज रावण की विशालकाय प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के पास रावण दल के सैनिक रहते हैं, जबकि राम दल के सैनिकों को मैदान के दूसरी ओर 200 मीटर दूर लगे रामध्वज की परिक्रमा करनी होती है। जैसे ही राम सैनिक परिक्रमा करने आते हैं, रावण दल के सैनिक गोफानो से पत्थरों की बौछार शुरू कर देते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि सैकड़ों-हजारों पत्थरों के बरसने के बावजूद किसी भी राम सैनिक को एक भी पत्थर नहीं लगता।
विधायक बोले: काला देव की भूमि पर चमत्कार
कार्यक्रम में उपस्थित क्षेत्रीय विधायक उमाकांत शर्मा ने इस अद्वितीय परंपरा की सराहना करते हुए कहा—
“हजारों सालों से काला देव की इस पावन भूमि पर पत्थर मार युद्ध दशहरे का आयोजन होता आ रहा है। यह केवल आस्था ही नहीं बल्कि भगवान का चमत्कार है कि राम दल के सैनिकों पर बरसाए गए पत्थर कभी भी उन्हें छू तक नहीं पाते।”
पत्थर चुनने की तैयारी भी खास
इस आयोजन में नारायणपुर के गोविंद भील और पवन सिंह भील जैसे कई युवक रावण दल की ओर से पत्थर बाज की भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बताया कि इस युद्ध की तैयारी कई दिन पहले से की जाती है।
गोविंद भील ने कहा—
“हम जंगलों में जाकर करीब 15 दिन पहले से विशेष किस्म के पत्थरों को चुनकर तराशते हैं। एक पत्थर का वजन लगभग 400 ग्राम तक होता है और हम अपने गोफान से इन्हें राम सैनिकों पर फेंकते हैं।”
पवन सिंह भील ने आगे बताया—
“युद्ध तीन राउंड में होता है। हर राउंड में हम 20 से 25 पत्थर राम सैनिकों पर बरसाते हैं। इस तरह से तीनों राउंड में क्विंटलों पत्थर बरसाए जाते हैं, लेकिन फिर भी किसी को चोट नहीं लगती। यही इस आयोजन का चमत्कार है।”
इतिहास और नवाब की चुनौती
स्थानीय पंडित रामेश्वर शर्मा ने बताया कि इस आयोजन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। नवाबी काल में टोंक रियासत के नवाब ने इसे बंद कराने का प्रयास किया था। नवाब के सैनिकों ने ग्रामीणों पर आरोप लगाया था कि वे जानबूझकर राम सैनिकों पर पत्थर नहीं मारते। तब चुनौती दी गई कि यदि यह आयोजन सचमुच ईश्वर की कृपा से चलता है तो गोलीबारी में भी राम सैनिकों को कुछ नहीं होना चाहिए।
इतिहास गवाह है कि नवाब के सैनिकों ने गोली चलाई, लेकिन एक भी गोली राम सैनिक को नहीं लगी। उसी दिन से यह आयोजन और भी वृहद और धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ माना जाने लगा और अब हर वर्ष बड़े स्तर पर इसका आयोजन किया जाता है।
राम और रावण दल की संरचना
इस आयोजन में विशेष बात यह है कि राम दल में केवल काला देव के स्थानीय लोग शामिल होते हैं, जबकि रावण दल में आसपास के गांवों के भील बंजारा समुदाय के युवक भाग लेते हैं। इससे यह आयोजन स्थानीयता और सामूहिकता का अद्भुत उदाहरण बन जाता है।
संस्कृति, आस्था और विश्वास का संगम
काला देव का पत्थर मार युद्ध दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई और आस्था की शक्ति का जीवंत प्रमाण है। इस आयोजन को देखने आने वाले श्रद्धालु इसे भगवान की कृपा का चमत्कार मानते हैं। दशहरे के इस अनोखे रूप में हिंसा नहीं, बल्कि विश्वास और परंपरा की जीत होती है।
काला देव का यह अद्वितीय दशहरा न सिर्फ मध्यप्रदेश, बल्कि पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखता है और आने वाली पीढ़ियों को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है।