7वां अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन: भारत शांति का अगुवा, युद्ध रोकने रूस को देना होगी बुद्ध की शिक्षा

भोपाल डेस्क :

साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित धर्म-धम्म सम्मेलन के दूसरे दिन 3 मुख्य-सत्र और 4 समानांतर-सत्रों में 40 से ज्यादा विद्वानों ने अपनी बात रखी। नए युग में पूर्व के मानववाद की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए रूस से आए प्रो. एंद्रे तैरेन्तिव ने कहा कि हिंसा पूरे विश्व की समस्या है। उन्होंने कहा कि रूस को बुद्ध की शिक्षाओं की आवश्यकता है, जिससे अहिंसा के सिद्धांत को बढ़ाया जा सके। बौद्ध धर्म की विसंगतियों से बौद्ध देशों में भी हिंसा बढ़ रही है और प्रो. तेरेन्तिव के मुताबिक बातचीत और संवाद से ही हल निकलेगा। रूस के यूनाइटेड रिलिजंस में एशिया विभाग की प्रभारी नदेज्दा बरकेंजम ने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि 21वीं सदी मनुष्यों में टकराव से हट कर मनुष्य के सांस्कृतिक पुनर्विकास की सदी है।

केंद्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गेशे सेमटेन ने कहा कि भारत ने नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से पोषित करने की बात की है। उन्होंने कहा कि 2 हजार साल पहले ही क्वाटंम फिजिक्स पर काम हो रहा था। प्रो. सेमटेन ने पूर्व और पश्चिम को विज्ञान और अध्यात्म पर एक साथ काम करने की जरूरत बताई।

मॉरिशस से आई प्रोफेसर वेदिका ने मॉरिशस और मध्यप्रदेश की तुलना करते हुए बालकवि बैरागी का जिक्र किया, जिन्होंने अपनी कविता में मॉरिशस को लैंड विदाउट स्नेक और स्वर्ग बताया था। उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते हुए अच्छे वैश्विक नागरिक तैयार करने की बात की। प्रो. वेदिका के मुताबिक पूर्वी मानववाद किसी एक आदमी के दिमाग की उपज नहीं है बल्कि सांस्कृतिक और व्यावहारिक जीवन पद्धति है, जो जीवन को जोड़ती है।

फ्लैम विश्वविद्यालय पुणे के प्रो. पंकज जैन ने जैन मानववाद और पर्यावरण पर केंद्रित अपने संबोधन में कहा कि जैन धर्म में पशु, पक्षी को भी मानव के बराबर माना गया है। जैन धर्म में व्यापार के लिए भी ऐसे कार्यों को चुना गया है, जिनसे किसी प्रकार की हिंसा न हो और न ही प्रकृति को नुकसान पहुँचे।

द्रौपदी ड्रीम ट्रस्ट की नीरा मिश्रा ने कहा कि संस्कृति का आधार प्रकृति है और भारत में प्रकृति के नियम सनातन काल से चले आ रहे हैं। भारत मानववाद का अगुवा है। भौतिकवाद और अध्यात्म के बीच टकराव इसलिए है क्योंकि हमें अपने जीवन के उद्देश्य का भान नहीं है।

थाइलैंड से आए सुपचई जियमवांसा ने भारत से अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने कहा कि उन्हें जब भी समस्या आती है वो बोधगया आते है और ध्यान लगाते है। उनके मुताबिक बुद्ध सिखाते है कि किसी की निंदा मत करो औऱ किसी को नुकसान मत पहुँचाओ। सम्मेलन के आखिरी दिन 5 मार्च को 8 सत्र में कई विषय-विशेषज्ञ अपने विचार रखेंगे। दोपहर बाद सभी प्रतिभागी साँची स्तूप के भ्रमण पर निकलेंगे।

Exit mobile version