दलाई लामा बोले चीन लौटने का तो कोई मतलब ही नहीं है उन्हें भारत पसंद है। वहीं, तवांग मठ के संतों ने चेतवानी देते हुए कहा कि चीन ध्यान रखे, ये 1962 नहीं, 2022 है।

नई दिल्ली डेस्क :

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीन और भारत के सैनिकों के बीच हुई झड़प को लेकर दोनों देशों में तनातनी की स्थिति है। इस बीच तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा और तवांग मठ के संतों की प्रतिक्रिया सामने आई है। दलाई लामा का कहना है कि चीन लौटने का तो कोई मतलब ही नहीं है। उन्हें भारत पसंद है। वहीं, तवांग मठ के संतों ने चेतवानी देते हुए कहा कि चीन ध्यान रखे, ये 1962 नहीं, 2022 है।

हिमाचल प्रदेश में सोमवार को जब दलाई लामा से तवांग झड़प को लेकर चीन के लिए उनके संदेश के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि चीजें सुधर रही हैं। यूरोप, अफ्रीका और एशिया में चीन ज्यादा फ्लेक्सिबल है, लेकिन चीन लौटने का कोई मतलब नहीं है। मैं भारत को पसंद करता हूं। कांगड़ा – पंडित नेहरू की पसंदीदा जगह है। यह जगह ही मेरा स्थायी निवास है।

दलाई लामा मंगलवार को गुरुग्राम के सलवान एजुकेशन ट्रस्ट स्कूल में जाएंगे। इसके बाद बिहार के बौध गया जाएंगे।

‘देश में मोदी सरकार है, वो किसी को नहीं बख्शेंगे’
तवांग में LAC पर भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच यांग्त्से में हुई झड़प के बाद बौद्ध मठ के लामाओं ने चीन को चेतावनी दी है। लामा येशी खावो का कहना है कि चीन इस बात का ध्यान रखे कि यह 1962 नहीं है, 2022 है और देश में PM नरेंद्र मोदी की सरकार है। वो किसी को नहीं बख्शेंगे। उन्हें भारत सरकार और भारतीय सेना पर पूरा भरोसा है, जो तवांग को सुरक्षित रखेगी।

लामा बोले- चीन की हरकत गलत है
लामा येशी ने कहा कि 1962 के युद्ध के दौरान तवांग मठ के भिक्षुओं ने भारतीय सेना की मदद की थी। चीनी सेना भी मठ में घुस गई थी, लेकिन उन्होंने किसी को चोट नहीं पहुंचाई। दरअसल, तवांग पहले तिब्बत का हिस्सा था और चीनी सरकार ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। चीन का दावा है कि तवांग भी तिब्बत का हिस्सा है। लेकिन तवांग भारत का अभिन्न अंग है। चीनी सरकार हमेशा दूसरे देशों के इलाकों के पीछे भागती है और यह पूरी तरह से गलत है।

लामा खावो ने यह भी कहा कि हमें चीनी सैनिकों से हुई झड़प की चिंता नहीं है, क्योंकि भारतीय सेना सीमा पर है। इसलिए हम यहां शांति से रह रहे हैं।

17वीं सदी से जुड़ा है तवांग मठ
1681 में बना तवांग मठ एशिया का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे पुराना मठ है। इसे 5वें दलाई लामा की मंजूरी के बाद बनाया गया था। छठे दलाई लामा का जन्म भी तवांग में हुआ था। जब दलाई लामा ल्हामो थोंडुप 1959 में तिब्बत पर चीनी हमले और कब्जे के बीच, तवांग के जरिए ही भारत आए थे। वे कुछ समय के लिए तवांग मठ में रहे थे।

लामा येशी बोले कि हमें 5वें और 6वें दलाई लामा का आशीर्वाद मिला है। फिलहाल तवांग मठ में 500 भिक्षु हैं। मठ और इसकी गुरुकुल प्रणाली के परिसर में 89 छोटे घर हैं। बौद्ध दर्शन के अलावा, सामान्य शिक्षा भी प्रदान की जाती है।

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