नई दिल्लीदेश

जन औषधि योजना के लाभार्थियों के साथ बात,सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र पर आगे बढ़ रहे भारत में सबके जीवन को समान सम्मान मिले। प्रधानमंत्री

नई दिल्ली :-

मुझे आज देश के अलग-अलग कोने में कई लोगों से बात करने का मौका मिला, बहुत संतोष हुआ। सरकार के प्रयासों का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए जो लोग इस अभियान में जुटे हैं, मैं उन सबका आभार व्यक्त करता हूं। आपमें से कुछ साथियों को आज सम्मानित करने का सौभाग्य सरकार को मिला है। आप सभी को जन-औषधि दिवस की भी मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

जन-औषधि केंद्र तन को औषधि देते हैं, मन की चिंता को कम करने वाली भी औषधि हैं और धन को बचाकर जन-जन को राहत देने वाला काम भी इसमें हो रहा है। दवा का पर्चा हाथ में आने के बाद लोगों के मन में जो आशंका होती थी कि, पता नहीं कितना पैसा दवा खरीदने में खर्च होगा, वो चिंता कम हुई है। अगर हम इसी वित्तीय वर्ष के आंकड़ों को देखें, तो जन-औषधि केन्द्रों के जरिए 800 करोड़ से ज्यादा की दवाइयाँ बिकी हैं।

इसका मतलब ये हुआ कि, केवल इसी साल जन-औषधि केन्द्रों के जरिए गरीब और मध्यम वर्ग के करीब 5 हजार करोड़ रुपए बचे हैं। और जैसा अभी आपने वीडियो में देखा अब तक सब मिला करके 13 हजार करोड़ रुपया बचा है। तो पिछली बचत से ज्‍यादा बचत हो रही है। यानी कोरोना के इस काल में गरीबों और मध्‍यम वर्ग के करीब 13 हजार करोड़ रुपये जन औषधि केंद्रों से बचना ये अपने-आप में बहुत बड़ी मदद है। और संतोष की बात है कि ये लाभ देश के ज़्यादातर राज्यों में ज़्यादातर लोगों तक पहुँच रहा है।

आज देश में साढ़े आठ हजार से ज्यादा जन-औषधि केंद्र खुले हैं। ये केंद्र अब केवल सरकारी स्टोर नहीं, बल्कि सामान्य मानवी के लिए समाधान और सुविधा के केंद्र बन रहे हैं। महिलाओं के लिए 1 रुपए में सैनिटरी नैपकिन्स भी इन केन्द्रों पर मिल रहे हैं। 21 करोड़ से ज्यादा सैनिटरी नैपकिन्स की बिक्री ये दिखाती है कि जन-औषधि केंद्र कितनी बड़ी संख्या में महिलाओं का जीवन आसान कर रहे हैं।

अंग्रेजी में एक कहावत होती है- Money Saved is Money Earned ! यानि जो पैसा बचाया जाता है, वो एक तरह से आपकी आय में जुड़ता है। इलाज में होने वाला खर्च, जब बचता है, तो गरीब हो या मध्यम वर्ग, वही पैसा दूसरे कामों में खर्च कर पाता है।

आयुष्मान भारत योजना के दायरे में आज 50 करोड़ से ज्यादा लोग हैं। जब ये योजना शुरू हुई है, तब से 3 करोड़ से ज्यादा लोग इसका लाभ उठा चुके हैं। उन्हें अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिला है। अगर ये योजना नहीं होती, तो हमारे इन गरीब भाई-बहनों को करीब-करीब 70 हजार करोड़ रुपए का खर्च करना पड़ता।

जब गरीबों की सरकार होती है, जब मध्‍यम वर्ग के परिवारों की सरकार होती है, जब निम्‍न-मध्‍यम वर्ग के परिवारों की सरकार होती है, तो समाज की भलाई के लिए इस प्रकार के काम होते हैं। हमारी सरकार ने जो पीएम नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम शुरू किया है। आजकल किडनी को लेकर कई समस्याएं ध्‍यान में आ रही हैं, डायलिसिस की सुविधा को लेकर ध्‍यान में आती हैं। जो हमने अभियान चलाया है। आज गरीबों ने डायलिसिस सेवा के करोड़ से ज्यादा सेशन मुफ्त कराए हैं। इस वजह से गरीबों के सिर्फ डायलि‍सिस का 550 करोड़ रुपए हमारे इन परिवारों के बचे हैं। जब गरीबों की चिंता करने वाली सरकार होती है, तो ऐसे ही उनके खर्च को बचाती है। हमारी सरकार ने कैंसर, टीबी हो या डायबिटीज हो, हृदयरोग हो, ऐसी बीमारियों के इलाज के लिए जरूरी 800 से ज्यादा दवाइयों की कीमत को भी नियंत्रित किया है।

सरकार ने ये भी सुनिश्चित किया है कि स्टंट लगाने और Knee Implant की कीमत भी नियंत्रित रहे। इन फैसलों से गरीबों के करीब-करीब 13 हजार करोड़ रुपए बच पाए हैं। जब गरीबों और मध्यम वर्ग के हितों के बारे में सोचने वाली सरकार होती है, तो सरकार के ये फैसले जन-सामान्‍य को लाभ करते हैं, और जन-सामान्‍य भी एक प्रकार से इन योजनाओं का Ambassador बन जाता है।

कोरोना के इस समय में दुनिया के बड़े-बड़े देशों में वहां के नागरिकों को एक एक वैक्सीन के हजारों रुपए देने पड़े हैं। लेकिन भारत में हमने पहले दिन से कोशिश की, कि गरीबों को वैक्सीन के लिए, हिन्‍दुस्‍तान के एक भी नागरिक को वैक्‍सीन के लिए कोई खर्चा न करना पड़े। और आज देश में मुफ्त वैक्‍सीन का ये अभियान सफलतापूर्वक चलाया है और हमारी सरकार 30 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा इसमें खर्च कर चुकी है क्‍योंकि हमारे देश का नागरिक स्‍वस्‍थ रहे।

आपने देखा होगा, अभी कुछ दिन पहले ही सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है, जिसका बड़ा लाभ गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को मिलेगा। हमने तय किया है कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के बराबर ही फीस लगेगी, उससे ज्यादा पैसे फीस के नहीं ले सकते हैं। इससे गरीबों और मध्यम वर्ग के बच्चों के करीब-करीब ढाई हजार करोड़ रुपए बचेंगे। इतना ही नहीं, वो अपनी मातृभाषा में मेडिकल एजुकेशन कर सके, टेक्निकल एजुकेशन ले सके, इसके कारण गरीब का बच्चा भी, मध्‍यम वर्ग का बच्‍चा भी, निम्‍न-मध्‍यम वर्ग का बच्‍चा भी, जिसके बच्‍चे स्‍कूल में अंग्रेजी में नहीं पढ़े हैं, वो बच्‍चे भी अब डॉक्‍टर बन सकते हैं।

भविष्य की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए हमारी सरकार हेल्थ इनफ्रास्ट्रक्चर को निरंतर मजबूत कर रही है। आज़ादी के बाद इतने दशकों तक देश में केवल एक ही एम्स था, लेकिन आज देश में 22 एम्स हैं। हमारा लक्ष्य, देश के हर जिले में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज का है। देश के मेडिकल संस्थानों से अब हर साल डेढ़ लाख नए डॉक्टर्स निकल कर आ रहे हैं, जो स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और सुलभता की बहुत बड़ी ताकत बनने वाले हैं।

देशभर के ग्रामीण इलाकों में हजारों wellness centres भी खोले जा रहे हैं। इन प्रयासों के साथ ही कोशिश ये भी है कि हमारे नागरिकों को अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पड़े। योग का प्रसार हो, जीवनशैली में आयुष का समावेश हो, फिट इंडिया और खेलो इंडिया मूवमेंट हो, आज ये हमारे स्वस्थ भारत अभियान का प्रमुख हिस्सा हैं।

आगे कहा

‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र पर आगे बढ़ रहे भारत में सबके जीवन को समान सम्मान मिले। मुझे विश्वास है, हमारे जन-औषधि केंद्र भी इसी संकल्प के साथ आगे भी समाज को ताकत देते रहेंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!