मध्यप्रदेश

खजुराहो नृत्य समारोह के पाँचवें दिन मंदिरों में उतरा रंग रंगीला फागुन

कुचिपुड़ी, कथक, भरतनाट्यम समूह नृत्य की प्रस्तुति

खजुराहो : 

होली भारतीय संस्कृति का ऐसा रंग-रंगीला त्यौहार है जो संपूर्ण वातावरण को उत्साह, उमंग और आनंद से भर देता है। पर्यटन नगरी खजुराहों में नृत्य समारोह के पाँचवे दिन इसके साक्षात दर्शन हुए जब प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना संध्या पुरेचा के नृत्य समूह ने होली की प्रस्तुति दी। ऐसा लगा मानो मदमाता  फागुन खजुराहो के विस्तीर्ण परिसर में उतर आया हो और मंदिरों में उत्कीर्ण नायिकाएँ मंदिरों की दरो दीवार से निकलकर नृत्यरत हो उठी हों। ऐसी ही अनुभूति खजुराहो मंदिर परिसर में उपस्थित सभी पर्यटक और कला प्रेमियों को हुई। समारोह के पाँचवे दिन वसंत किरण एवं साथी कादिरी आंध्र प्रदेश द्वारा कुचिपुड़ी समूह नृत्य, शर्वरी जमेनिस और साथी पुणे द्वारा कथक और संध्या पूरेचा एवं साथी मुंबई द्वारा भरतनाट्यम समूह नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

कादिरी आंध्रप्रदेश के डॉ. बसंत किरण और उनके साथियों के कुचिपुड़ी समूह नृत्य में परिधान, नृत्य, भाव और अंग संचालन से सजी प्रस्तुति को देख रसिक अभिभूत थे। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित अर्द्धनारीश्वर नटेश्वर पर एक रूपक “शंकरी शंकरेयम्” रचते हुए डॉ. बसंत किरण ने यह प्रस्तुति दी। यह कथा प्रकृति और पुरूष का एक साथ आने की है, जिसे वैले स्टाइल में किया गया। रूपक वेदांतम रामलिंगम शास्त्री का था जबकि नृत्य रचना खुद बसंत किरण की थी। संगीत वेंकटेश कुप्पस्वामी का था।

शाम की दूसरी प्रस्तुति पुणे की सर्वरी जमेनीस के कथक नृत्य के नाम रही। रोहिणी भाटे की शिष्या सर्वरी जी ने अपने नृत्य का आगाज़ नृत्य वंदना से किया। राग, यमन और तीन ताल में सजी रचना – “ओम अनादि अनंत..” पर नृत्य करते हुए उन्होंने स्थल काल, ऊर्जा दिशाएँ, रंगभूमि, स्वर, लय, ताल, नूपुर आदि की भावपूर्ण ढंग से वंदना की। इसके बाद शुद्ध नृत्य में उन्होंनें तीनताल पर उठान, तहत आमद परन, परन आमद तत्कार टुकड़े आदि की प्रस्तुति दी। प्रस्तुति का समापन उन्होंने भावनृत्य से किया। तीनताल में “रंग की पिचकारी मारी” पर उन्होंने होली और फागुन को साकार करने की कोशिश की। इस प्रस्तुति में उनके साथ शिष्या मुग्धा तिवारी, वैष्णवी देशपाण्डे, जूही सगदेव ने भी नृत्य भावों से खूब रंग भरे। प्रस्तुति में तबले पर निखिल फाटक, बाँसुरी पर श्री सुनील अवचट एवं गायन और हारमोनियम पर श्री मनोज देसाई ने साथ दिया।

शाम का समापन संध्या पुरेचा और उनके समूह द्वारा भरतनाट्यम नृत्य से हुआ। संध्या पुरेचा भरत नाट्यम की विदुषी नृत्यांगनाओं में शुमार होती हैं और देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आगाज़ सनातन धर्म की तीनों धाराओं शैव, वैष्णव एवं शाक्त पर केंद्रित बैले से किया। राग और ताल मालिका से सजी इस प्रस्तुति में अर्द्धनारीश्वर, उमा महेश्वर स्त्रोत पर  शानदार प्रस्तुति दी गई। उमा महेश्वर स्त्रोत के श्लोक रूपम देहि, जयं देहि पर उन्होंने भगवान विष्णु के द्वारिकाधीश ओर विट्ठल स्वरूप को नृत भावों से साकार किया। इसके बाद संध्या पुरेचा और साथियों ने दुर्गा शप्तशती के अर्गला स्त्रोत से शक्ति उपासना को भाव नृत्य से पेश किया। प्रस्तुतियों में भावना शाह, चित्रा दलवी, पुष्कर देवचाके, रेशमा गुदेकर, ध्रुव पाटकर, मधुजा गोलटकर, उष्मी दोषी, शरवानी कुलकर्णी, मनस्वी मिरलेकर रुपाली सुर्वे, सनिका शिंदे और मंजुश्री माते ने साथ दिया। संगीत श्रीप्रसाद और मनोज देसाई का था। परकशन पर सतीश कृष्णमूर्ति, बाँसुरी पर विजय तांबे और चेतन जोशी ने संगीत की लय बांध दी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!