संसार में सभी लोग मिलकर यदि अच्छाई को चुन लें तो संसार से बुराई बिना युद्ध के समाप्त हो जायेगी: मैथलीशरण महराज

आनंदपुर डेस्क :

अस्त्र वह है जो दूर जाकर प्रहार करे, शस्त्र वह है जो पास से प्रहार करे,

लक्ष्मण जी भगवान के शस्त्र हैं जो भगवान के पास सेवा में रहकर राक्षसों का संघार करते हैं,श्रीभरत जी भगवान के अस्त्र हैं जो भगवान से दूर अयोध्या में रहकर उन सूक्ष्म राक्षसों को समाप्त करते हैं जो बुराइयाँ जीवन में होती तो हैं पर दिखाई नहीं देती हैं,

दुर्गुणों के उन सूक्ष्म जीवाणुओं को भरत जी ने समाप्त कर दिया।

हनुमान जी भगवान के पास में रहकर लक्ष्मण बन जाते हैं और दूर रहकर भरत बन जाते हैं,वे शस्त्र भी हैं और अस्त्र भी हैं।

हनुमान जी सकल गुण निधान हैं,

कथा पंडाल में खचाखच भरे तमाम श्रद्धालु श्रोताओं को संबोधित करते हुए मानस की निगूढ़ व्याख्या करते हुए स्वामी मैथिलीशरण ने ये विचार आनंदपुर- सद्‌गुरु सेवासंघ में रामदास हनुमान जी के परिसर में ये विचार प्रस्तुत किए।

उन्होंने कहा संसार में न जाने कितने लोग खर दूषण वृत्ति लिए या तो दूसरों में दोष देखकर समय समय और दृष्टि का दुरुपयोग कर रहे हैं, या फिर खर की तरह पीठ पर गुणाभिमान का भार लेकर बोझ लिए घूम रहे हैं पर उन गुणों का वास्तविक रूप न जानने के कारण बस बिचर रहे हैं

हनुमान जी को सकल गुण निधानं इसलिए कहा गया क्यों कि उन्होंने अपनी शक्ति, योग्यता को भगवान की सेवा सामग्री बना दिया, गुण जब भगवान को अर्पित होता है तभी वह गुण होता है नहीं। तो वही गुण दोष हो जाता है,

हनुमान जी ने बल का उपयोग भगवान की सेवा में किया, सोने की तरह शरीर है, सोने के पर्वत के समान अपना शरीर बढ़ा सकते हैं, पर सोने के मैनाक पर्वत को स्पर्श करके आगे निकल जाते हैं, जिनके अंदर सोने का न तो लोभ है और न ही त्याग का अहंकार है।

बुराई के राक्षसों के बन को जला देने के लिए वे अग्नि हैं, दनुज वन कृषानुं हैं,

हनुमान जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे रघुपति प्रिय भक्तं हैं,

गुणों का जीवन में होना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हम उन गुणों का उपयोग कहाँ पर कर रहे हैं? हमारे गुणों का लाभ रावण और दुर्योधन को मिल रहा है या राम या कृष्ण को हमारे गुण अर्पित हैं,

कर्ण और अर्जुन दोनों में गुण हैं पर कर्ण के गुणों का लाभ दुर्योधन के रूप बराई को मिला और अर्जुन के गुणों का अर्पण भगवान कृष्ण की सेवा किया गया।

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