नई दिल्ली

बाबा साहब आंबेडकर का वो भाषण जो वर्तमान का आईना है और भविष्य की सीख भी

गुलाम भारत से निकली जिन दो हस्तियों ने आजाद भारत में सबसे ज्यादा दिलों में जगह बनाई, प्रभावित किया और विवाद का हिस्सा रहे वो थे गांधी और आंबेडकर.


नई दिल्लीः 

आजादी की लड़ाई में उसको समझने, उसके लिए लड़ने और उसके साथ खड़े होने के तरीके सबके अलग-अलग थे. आजादी कैसे आई, किसकी वजह से आई और किसकी कितनी भूमिका थी. इतिहास समय-समय पर इसका मूल्यांकन करता रहता है. लेकिन गुलाम भारत से निकली जिन दो हस्तियों ने आजाद भारत में सबसे ज्यादा दिलों में जगह बनाई, प्रभावित किया और विवाद का हिस्सा रहे वो थे गांधी और आंबेडकरइन दोनों हस्तियों की खासियत यही है कि गुजरते वक्त ने इनके विचारों को और पुख्ता किया. इनपर जितने ज्यादा विवाद हुए उतना ही ये लोकप्रिय होते गए. जितना इन्हें समझा गया उतना ही वो जिज्ञासा बढ़ाने वाले निकले. ये बात भी सच है कि दोनों हस्तियों के विचार कभी मेल नहीं खाए. वो आपस में एक दूसरे के आलोचक भी थे और प्रशंसक भी.

आजादी के बाद गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया. वहीं, आंबेडकर लोगों की आवाज बनने वाले संविधान के निर्माता बने. इतिहास की सबसे अच्छी और खराब बात यही होती है कि उसमें तुलना बहुत होती है. गांधी और आंबेडकर के साथ भी ऐसा ही रहा. तुलना के पलड़े में रखकर दोनों को खूब तौला गया पर समझा उससे भी कम गया. उनकी बातों पर बहस खूब हुई लेकिन उसपर अमल न के बराबर हुई. इसलिए लगता है कि कभी कभी तुलना बेवजह सी चीज है.

आज के इस किस्से में बात आंबेडकर की होगी क्योंकि आज ही के दिन यानी की 6 दिसंबर 1956 को आंबेडकर का निधन हुआ था. यूं तो आंबेडकर की कई बातों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. लेकिन, उन्होंने जो हथियार संविधान के रूप में हमें दिया शायद वो उनकी जिंदगी की भी सबसे बड़ी उपलब्धि रही हो. लेकिन, आंबेडकर ने इस संविधान को सौंपते हुए एक चेतावनी दी थी. एक अपील की थी. जो हम सभी को जरूर जान लेनी चाहिए. ये आंबेडकर की कही वो बातें थी जो वर्तमान का आईना है और भविष्य की सीख भी. आइए जानते हैं कि आखिर वो क्या सलाह थी.

आंबेडकर की पहली चेतावनी
संविधान देश को सौंपने से पहले आंबेडकर ने तीन चेतावनी दी थी. जिसमें उन्होंने पहली चेतावनी देते हुए लोकतंत्र में विरोध के स्वरूप पर बात की थी. आंबेडकर ने कहा था- यदि हमे अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करना है तो संवैधानिक तरीकों पर तेजी से अपनी पकड़ बनानी होगी. उनका मानना था कि कि हमें खूनी क्रांति के तरीकों को पीछे छोड़ देना चाहिए.

आंबेडकर ने साफतौर पर कहा था कि सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह की राह छोड़ देनी चाहिए. आंबेडकर ने कहा था कि अपनी बात को कहने के लिए हमेशा संवैधानिक मंच का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे आंदोलन देश में केवल और केवल अराजकता ही फैलाते हैं. इसलिए इन तरीकों से लोगों को बचना चाहिए.

आंबेडकर की दूसरी चेतावनी
आंबेडकर ने दूसरी चेतावनी देते हुए अंग्रेज विचाकर जॉन स्टुअर्ट मिल का जिक्र किया था. मिल ने एक चर्चित किताब ‘ON LIBERTY’ 1859 में लिखी थी. इसका जिक्र करते हुए आंबेडकर ने कहा- किसी नेता या किसी संस्था पर लोगों को आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए. उनका मानना था कि उन महापुरुषों के प्रति आभारी होने में कुछ भी गलत नहीं है, जिन्होंने देश के लिए जीवन भर अपनी सेवाएं प्रदान की हैं. लेकिन कृतज्ञता की अपनी सीमाएं होती हैं.

एक और मशहूर विचारक पैट्रियट डैनियल ओ’कोनेल का जिक्र करते हुए आंबेडकर बोले- कोई भी व्यक्ति अपने सम्मान की कीमत पर किसी और के प्रति आभारी नहीं हो सकता है. कोई भी देश, अपनी स्वतंत्रता की कीमत पर किसी के प्रति आभारी नहीं हो सकता है.

तीसरी चेतावनी जो सबसे जरूरी है
आंबेडकर ने अपनी तीसरी चेतावनी में कहा कि हमें केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें समानता (Equality), स्वतंत्रता (Liberty) और बंधुत्व (Fraternity) के सिद्धांतों के साथ सामाजिक लोकतंत्र के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए. हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को एक सामाजिक लोकतंत्र (Social Democracy) भी बनाना होगा.

उनके अनुसार, एक राजनीतिक लोकतंत्र तब तक प्रगति नहीं कर सकता, जब तक कि उसका आधार सामाजिक लोकतंत्र नहीं होता है.

वो चेतावनी जो सबको जाननी चाहिए
आंबेडकर का कहना था कि धर्म में भक्ति आपको उद्धार और मुक्ति की ओर लेकर जाती है, लेकिन यही भक्ति जब राजनीति में आती है और किसी पार्टी या किसी व्यक्ति के लिए होती है तो ये देश को तानाशाही और विनाश की ओर लेकर जाती है.

अंग्रेजों को नहीं ठहरा सकते दोषी
आंबेडकर ने आखिरी में कहा हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस स्वतंत्रता ने हमें महान जिम्मेदारियां दी हैं. स्वतंत्रता के बाद से हम कुछ भी गलत होने पर अब अंग्रेजों को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं. यदि यहां से चीजें गलत हो जाती हैं, तो हमारे पास खुद को छोड़कर, दोष देने के लिए कोई नहीं होगा.

उन्होंने कहा था कि मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा. दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाये, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा

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